तुमसे मुझको प्यार बहुत है
बीच खड़ी दीवार बहुत है
भले मुझे तरजीह नहीं दो
मैं मानूँ अधिकार बहुत है
मिली नियति से जब सुन्दरता
क्यों करती श्रृंगार, बहुत है
आँखों से उतरा तो देखा
दिल तेरा बीमार बहुत है
आस पास और देखो नीचे
जीने को आधार बहुत है
झटपट मुझको तू अपना ले
जीवन मे रफ्तार बहुत है
सुमन के रंग में रंग जाओ तो
खुशियों का संसार बहुत है
बीच खड़ी दीवार बहुत है
भले मुझे तरजीह नहीं दो
मैं मानूँ अधिकार बहुत है
मिली नियति से जब सुन्दरता
क्यों करती श्रृंगार, बहुत है
आँखों से उतरा तो देखा
दिल तेरा बीमार बहुत है
आस पास और देखो नीचे
जीने को आधार बहुत है
झटपट मुझको तू अपना ले
जीवन मे रफ्तार बहुत है
सुमन के रंग में रंग जाओ तो
खुशियों का संसार बहुत है
10 comments:
वाह सुमन जी बहुत उम्दा ग़ज़ल है
प्रभावित करती रचना .
आशीर्वाद
आँखों से उतरा तो देखा
दिल तेरा बीमार बहुत
बहुत ही सुंदर श्रृंगारिक रचना
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नहीं रहे कंप्यूटर माउस के जनक डग एंजेलबर्ट - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह...
बहुत बहुत सुन्दर....
बेहतरीन ग़ज़ल...
सादर
अनु
आप लिखें तो सब सुध पाते, शब्दों में आसार बहुत है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/ चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह......शब्दों का अद्भुत संयोजन.
बहुत सुंदर ग़ज़ल...
~सादर!!!
बहुत प्रभावी रचना !
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