क्यों भला कहते हो प्यारे जिन्दगी निस्सार है
जिन्दगी जी करके देखो जिन्दगी बस प्यार है
मौत तो आएगी एक दिन ये पता किसको नहीं
इसके डर से बैठता वह आदमी बीमार है
जोड़ने या फिर घटाने में परेशां हर कोई
जिन्दगी एहसास है या इक नया व्यापार है
भूलकर इन्सानियत को जीतने की है ललक
मेरा मज़हब तेरा मज़हब व्यर्थ की तकरार है
आदमी होने का मतलब तब सफल होगा सुमन
ज्ञान से रौशन हो दुनिया प्रेम इक आधार है
जिन्दगी जी करके देखो जिन्दगी बस प्यार है
मौत तो आएगी एक दिन ये पता किसको नहीं
इसके डर से बैठता वह आदमी बीमार है
जोड़ने या फिर घटाने में परेशां हर कोई
जिन्दगी एहसास है या इक नया व्यापार है
भूलकर इन्सानियत को जीतने की है ललक
मेरा मज़हब तेरा मज़हब व्यर्थ की तकरार है
आदमी होने का मतलब तब सफल होगा सुमन
ज्ञान से रौशन हो दुनिया प्रेम इक आधार है
4 comments:
वाह!
भूलकर इन्सानियत को जीतने की है ललक
मेरा मज़हब तेरा मज़हब व्यर्थ की तकरार है...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
latest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
जिन्दगी का आधार यदि प्रेम हो तो फिर जिन्दगी हो जाती है गुलजार
बहुत सुन्दर, आभार !
बहुत खूब, धुँआधार
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