Thursday, January 23, 2014

नींद तुम्हारी आँखों में

नींद तुम्हारी आँखों में पर मैंने सपना देखा है
अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा है

किसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है

बड़े लोग की सर्दी - खाँसी अखबारों की सुर्खी में
फिक्र नहीं जनहित की ऐसी खबर का छपना देखा है

धर्म-कर्म पाखण्ड बताकर जो मंचों से बतियाते
उनके घर में अक्सर यारो मन्त्र का जपना देखा है

चुपके से घायल करते फिर अपना बनकर सहलाते
हाल सुमन का जहाँ पे ऐसा वहीं तड़पना देखा है

5 comments:

हिमांशु पाण्‍डेय said...

अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा है

बहुत खूब कहा है।

Unknown said...

बहुत खरी बातें कह डाली
वाह

Unknown said...

बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है।
बहुत सुन्दर

Unknown said...

किसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है
बहुत सुन्दर भाव

अशोक झा 'दुलार' said...

अपनों गैरों की भेद जिया ही खोले है।
लहूलुहान लहू जब करता,
भाव भरा दिल किसी का बोले है ।।

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