तेरा हो या मेरा हो
हृदय प्रेम का डेरा हो
खुद को पात्र बना ले यूँ
जैसे कुशल ठठेरा हो
जीवन में संघर्ष मुदा
अनुशासन का घेरा हो
खुद जीना दीपक जैसे
जाओ जहाँ अंधेरा हो
जीओ खतरे में ऐसे
जैसे चतुर सपेरा हो
वाणी में आकर्षण भी
ऐसा लगे चितेरा हो
सीख सुमन तू यूँ जीना
हर पल नया सबेरा हो
हृदय प्रेम का डेरा हो
खुद को पात्र बना ले यूँ
जैसे कुशल ठठेरा हो
जीवन में संघर्ष मुदा
अनुशासन का घेरा हो
खुद जीना दीपक जैसे
जाओ जहाँ अंधेरा हो
जीओ खतरे में ऐसे
जैसे चतुर सपेरा हो
वाणी में आकर्षण भी
ऐसा लगे चितेरा हो
सीख सुमन तू यूँ जीना
हर पल नया सबेरा हो
3 comments:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (26.12.2014) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि" (चर्चा अंक-1839)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
badhiya likha hai...
Post a Comment