Tuesday, August 11, 2015

जिसकी है नमकीन जिन्दगी

जो दिखती रंगीन जिन्दगी
वो सच में है दीन जिन्दगी

बचपन, यौवन और बुढ़ापा
होती सबकी तीन जिन्दगी

यौवन मीठा बोल सके तो
नहीं बुढ़ापा हीन जिन्दगी

जीते जो उलझन से लड़ के
उसकी है तल्लीन जिन्दगी

वही छिड़कते नमक जले पर
जिसकी है नमकीन जिन्दगी

दिल से हाथ मिले आपस में
होगी क्यों गमगीन जिन्दगी

जो करता है प्यार सुमन से
वो जीता शौकीन जिन्दगी

2 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
धन्यवाद http://manoramsuman.blogspot.com/2015/08/blog-post_23.html

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बढ़िया

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!