कहना है आसान मुसाफिर
देना मुश्किल मान मुसाफिर
नारी बिनु क्या मोल पुरुष का
कर नारी सम्मान मुसाफिर
देना मुश्किल मान मुसाफिर
नारी बिनु क्या मोल पुरुष का
कर नारी सम्मान मुसाफिर
नारी है संगीत मुसाफिर
है नारी तो प्रीत मुसाफिर
नर हारा जब हारी नारी
जीत मिली तो जीत मुसाफिर
नर - नारी का मेल मुसाफिर
समझ इसे मत खेल मुसाफिर
अनुशासित नर को रखना तो
नारी एक नकेल मुसाफिर
कहे त्रिया को नर्क मुसाफिर
तब तो पड़ता फर्क मुसाफिर
नारी बिनु क्या मोल पुरुष का
तू भी दे कुछ तर्क मुसाफिर
सब होंगे निष्प्राण मुसाफिर
कर तबतक निर्माण मुसाफिर
नर - नारी के कारण जग में
आते नूतन - प्राण मुसाफिर
जब खोला अखबार मुसाफिर
पढ़ - पढ़ के बीमार मुसाफिर
देखा खबर कई महिला पर
कितना अत्याचार मुसाफिर
नारी ममता नेह मुसाफिर
मूरख समझे देह मुसाफिर
बढ़े सुमन विश्वास परस्पर
कैसा फिर संदेह मुसाफिर
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-09-2015) को "हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-2098) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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