Saturday, September 12, 2015

मूरख समझे देह मुसाफिर

कहना  है  आसान  मुसाफिर
देना  मुश्किल मान मुसाफिर
नारी बिनु क्या मोल पुरुष का
कर  नारी  सम्मान  मुसाफिर

               नारी   है   संगीत   मुसाफिर
               है  नारी   तो  प्रीत  मुसाफिर
               नर   हारा   जब   हारी  नारी
               जीत मिली तो जीत मुसाफिर

नर - नारी  का मेल  मुसाफिर
समझ इसे मत खेल मुसाफिर
अनुशासित नर को  रखना तो
नारी   एक  नकेल   मुसाफिर

              कहे  त्रिया को नर्क मुसाफिर
              तब तो पड़ता फर्क मुसाफिर
              नारी बिनु क्या मोल पुरुष का
              तू भी दे  कुछ  तर्क मुसाफिर

सब   होंगे  निष्प्राण  मुसाफिर
कर तबतक निर्माण मुसाफिर
नर - नारी  के  कारण  जग में
आते  नूतन - प्राण   मुसाफिर

              जब खोला अखबार मुसाफिर
              पढ़ - पढ़ के बीमार मुसाफिर
              देखा  खबर  कई  महिला  पर
              कितना   अत्याचार   मुसाफिर

नारी  ममता  नेह मुसाफिर
मूरख समझे देह मुसाफिर
बढ़े  सुमन  विश्वास परस्पर
कैसा फिर संदेह मुसाफिर

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-09-2015) को "हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-2098) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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