Sunday, January 3, 2016

इबादत है मेरी कविता सुबह से शाम लिखता हूँ

कहीं कर्तव्य की बातें कहीं अधिकार की बातें
कभी सरकार की बातें कभी संसार की बातें
सभी बातें मिले तो जिन्दगी का फलसफा बनता
इसे गर जोडना कर लो हमेशा प्यार की बातें

इबादत है मेरी कविता सुबह से शाम लिखता हूँ
कहीं जीसस, कहीं अल्ला, कहीं पे राम लिखता हूँ
जहाँ लोगों के मन को भा गयी तो बच गयी कविता
नहीं तो रेत पर अपना समझ लो नाम लिखता हूँ

बढी विज्ञान से सुविधा मगर परिवार टूटा है
मिली शोहरत मगर विश्वास का आधार टूटा है
नशा दौलत करें हासिल सभी पे इस कदर छाया
हजारों घर यहाँ टूटे किसी का प्यार टूटा है

मैं जीवन के सभी पहलू पे यारों गीत लिखता हूँ
यकीनन दुश्मनों को भी हमेशा मीत लिखता हूँ
नहीं कुछ प्रेम के बाहर सुमन दिखता जमाने में
शिकायत हो भले कुछ को यकीं से प्रीत लिखता हूँ

1 comment:

हिमांशु पाण्‍डेय said...

इबादत है मेरी कविता सुबह से शाम लिखता हूँ

बहुत खूब। साधुवाद

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!