अच्छे दिन की तैयारी है
या रोने की फिर बारी है
क्यों दशकों से छले गए हम
नादानी या लाचारी है
वादे बदले, शासक बदला
जनता अबतक बेचारी है
कौन धरम है ऊंचा, नीचा
इस पर भी मारामारी है
मानवता भी गयी रसातल
यह आयोजन सरकारी है
दहशतगर्दी बढती जाती
कारण घर घर बेकारी है
लूटा जिसने देश अभीतक
नेता, मंत्री, अधिकारी हैं
इसे कहें क्यों सहनशीलता
सच पूछो तो बीमारी है
अब तो जागो देशवासियों
सुमन व्यवस्था हत्यारी है
या रोने की फिर बारी है
क्यों दशकों से छले गए हम
नादानी या लाचारी है
वादे बदले, शासक बदला
जनता अबतक बेचारी है
कौन धरम है ऊंचा, नीचा
इस पर भी मारामारी है
मानवता भी गयी रसातल
यह आयोजन सरकारी है
दहशतगर्दी बढती जाती
कारण घर घर बेकारी है
लूटा जिसने देश अभीतक
नेता, मंत्री, अधिकारी हैं
इसे कहें क्यों सहनशीलता
सच पूछो तो बीमारी है
अब तो जागो देशवासियों
सुमन व्यवस्था हत्यारी है
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-06-2016) को "लो अच्छे दिन आ गए" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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