Monday, July 11, 2011

समझ वहीं से नया भोर है

मिलन की चाहत जहाँ जोर है
और विकलता उभय ओर है

ऊथल पुथल दिल के अन्दर तब
बाहर से भी अधिक शोर है

झिझक शेष क्यों रहे भला जब
नहीं किसी के हृदय चोर है

प्रियतम से हो मिलन जहाँ भी
समझ वहीं से नया भोर है

दिखे नैन में तड़प मिलन की
सुमन आँख में भरा नोर है

नोर - आँसू जिसे कहीं कहीं "लोर" भी कहा जाता है।

12 comments:

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर रचना ..

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत सुंदर गज़ल श्यामल जी...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावमयी अभिव्यक्ति

दर्शन कौर धनोय said...

प्रियतम से हो मिलन जहाँ भी
समझ वहीं से नया भोर है

बहुत उम्दा शायरी हैं ....दिल की उथल -पुथल से सराबोर ..प्रेयसी से मिल्न की चाह ...

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर, सदा की तरह।

Vivek Jain said...

बहुत ही सुन्दर व भावमयी,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डॉ. मोनिका शर्मा said...

भावपूर्ण रचना

Sunil Kumar said...

झिझक शेष क्यों रहे भला जब
नहीं किसी के हृदय चोर है
बहुत ही सुन्दर व भावमयी रचना ..,

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

छंद-बद्ध,प्रवाहमयी सुंदर कविता.वाह!!

nawab said...

नमस्ते अंकल,
क्या ये रचना मुझे ध्यान में रख कर लिखी है..
:)
एक सुझाव: "नया भोर" की जगह "नयी भोर" कैसा रहेगा?
लेकिन इस से "भरा नोर है" की लय बिगड़ जाएगी..
जो भी है... मेरे ह्रदय के भाव इसमें पूरे हैं..
आपकी रचनाओं में बच्चे, युवा, बड़े... सभी "समानुभूति" (Empathy) रख सकते है...

चरण स्पर्श

रंजना said...

बहुत ही सुन्दर...वाह !!!!

Unknown said...

बेहतरीन रचना

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