Sunday, July 14, 2024

मगर बेचना मत खुद्दारी

यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ 
मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ 

जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को 
वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ 

अक्सर लोग चुने हैं अपने जो शासक 
वो जन से करते होशियारी एक तरफ 

जनता खातिर सदा खजाना है खाली 
धनवानों को धन सरकारी एक तरफ 

गुर्गे शासक - दल के गली - मुहल्ले में 
खुलेआम करते रंगदारी एक तरफ 

गर समाज को बेहतर और बनाना तो
करनी होगी सबसे यारी एक तरफ 

आमजनों की पीड़ा गाए रोज सुमन 
रोको शासक की ऐय्यारी एक तरफ 

Wednesday, June 19, 2024

लेकिन बात कहाँ कम करते

मैं - मैं पहले अब हम करते 
लेकिन बात कहाँ कम करते 

गंगा - गंगा पहले अब तो 
गंगा, यमुना, जमजम करते 

विफल परीक्षा या दुर्घटना
किसने देखा वो गम करते

प्रश्न खड़ा करनेवालों को 
खोज खोज के बेदम करते 

सारे वादे साबित झूठे 
पुनः झूठ से मरहम करते

अक्सर रो देते मंचों पर 
यूँ बारिश बिन मौसम करते 

लोक जागरण से परिवर्तन 
चलो सुमन अपने दम करते 

जो आँसू को छुपा के जीते

देखो जिसको वही शान में, कौन है कमतर दुनिया में
जो आँसू को छुपा के जीते, वो ताकतवर दुनिया में

कदम कदम संघर्ष जिन्दगी, खुद से ही सुलझाना भी 
फिर जो मदद करे दूजे की, कोशिश बेहतर दुनिया में 

हाल बुरे हैं सभी जगह के, ये खबरें आतीं रहतीं
एक, एक मिल दो होते या, ग्यारह अक्सर दुनिया में 

आसपास में लोग हजारों, पर चेहरों पर शिकन लिए 
अगली पीढ़ी खातिर डर से, करते थर-थर दुनिया में 

रौशन अन्दर ज्ञान - दीप से, बाहर पूजा - दीप जरे
दीपक लेकर चले सुमन जो, वो कद्दावर दुनिया में

मंत्र गढ़े साहित्य

समझ नहीं साहित्य की, पर लेखन का रोग।
करते पूजन व्यक्ति की, चारण बन के लोग।।

सामाजिक सद्भाव के, मंत्र गढ़े साहित्य।
सहजीवन सहयोग का, तब उगता आदित्य।।

आस - पास जो तख्त के, खूब मनाते जश्न।
कलमकार पूछे सदा, शासक - गण से प्रश्न।।

जोड़े सकल समाज को, लेखन वही सटीक। 
चमक दमक में कुछ बिके, जो लिखते थे ठीक।।

क्यों लिखते हो क्या लिखें, करना सदा विचार।
हम जन की उलझन लिखें, वो पूजे सरकार।।

नफरत के बाजार में, मत भड़काओ आग।
सच लिखना जिससे बढ़े, सामाजिक अनुराग।।

कभी नहीं लिखना सुमन, पाया क्या सम्मान?
ऐसे जो खुद से करे, खुद का ही अपमान।।

दाँत पेट में जिनके साथी

कितने प्यारे इनके साथी 
दाँत पेट में जिनके साथी 

सच पूछो तो आँख तरेरे 
पता नहीं क्यों पिनके साथी

कुछ तो खुन्नस पाले मन में 
लेंगे बदला गिन के साथी 

चुने लोग अक्सर ये समझे
लोग-बाग को तिनके साथी

अभी साथ जो उनसे डर ये 
कब हो जाएँ उनके साथी 

आमजनों में है पछतावा 
किनको भेजा चुन के साथी 

सुमन बात पे गौर करो या 
जीओ माथा धुन के साथी 

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