Tuesday, September 19, 2023

अनपढ़ को देना मन वोट

भले करो तुम जिसे सपोर्ट
अनपढ़ को देना मत वोट

चौपट राजा हुआ जहाँ भी
आमजनों को मिली कचोट 

संभव है फिर लोभ जगाने 
घर - घर जा कर बाँटें नोट 

मत फँसना मोहक वादों में 
परख जरा नीयत की खोट 

रोटी खातिर बहुजन तरसे 
शासक दल खाते अखरोट

काम किए बिन करते रहते
केवल भाषण से विस्फोट 

सुमन सभी अन्याय छुपाने 
क्यों   लेते  गाँधी की ओट 

भारत, इंडिया जो कहो

नाम  बदलते  जा रहे, कहाँ  हुआ कम क्लेश?
भारत, इंडिया  जो कहो, क्या  बदले परिवेश??

विवश मीडिया, तंत्र  सब, अर्थव्यवस्था  ठूठ।
राजा  के  वादे  सभी, अबतक  साबित झूठ।।

कहाँ  गया  कानून  भी, कैसा  हुआ  समाज?
फँसा  दिए  जाते  वही,  ऊँची  जो आवाज।।

जब राजा सचमुच करे, जन जन का सम्मान।
आगे  बढ़ता  देश  वो, अवसर  जहाँ  समान।।

साल  छिहत्तर  हो  रहे, तब  से हम आजाद।
जाति,  धरम   उन्माद  से,  लोकतंत्र  बर्बाद।।

अनपढ़ का लगने लगा, अब तो अर्थ विशेष।
भोगे  उलझन  बोलकर,  नहीं  नौकरी  शेष।।

कान्हा  के  इस  देश  में,  बढ़ा कंस का मान। 
बाँट  रहे  अब  वो  सुमन, धर्म और भगवान।।

Wednesday, August 23, 2023

दोनों के आँसू मिले

एक गीत के भाव ने, ऐसा किया कमाल। 
दोनों के आँसू मिले, भींगा एक रुमाल।। 

आँसू कैसे मिल गए, कैसे हुआ कमाल?
पोंछा उसी रुमाल से, हम दोनों के गाल।। 

बहुत कीमती हो गया, लगता वही रुमाल। 
बिन धोये रक्खा उसे, मुमकिन तभी कमाल।। 

यह भी एक कमाल है, दशकों रखा संभाल।
प्यारा अबतक लग रहा, सचमुच वही रुमाल।।

जीवन में सचमुच सुमन, होता रहा कमाल।
बहके मन तो रोकता, अबतक वही रुमाल।।

आँगन में अब कुआं कुआं है

भाषण में बस गुमां गुमां है 
मगर देश में धुआं धुआं है 

पहले अंधा किया सोच से 
आँगन में अब कुआं कुआं है

इक दूजे पर भौंके पहले 
अब संसद में हुवां हुवां है 

आमजनों की झुकी कमरिया 
केवल शासक जवां जवां है 

सुमन रौशनी ये बाँटे यूँ
जला रहे बस मकां मकां है 

Tuesday, August 8, 2023

हर सवाल से डरते हैं

राजा खुद कहते जग वाले, मेरी चाल से डरते हैं 
देख वही अब आमजनों के, हर सवाल से डरते हैं

गद्दी खातिर बन के ज्ञाता, उल्टा - सीधा बोल रहे 
वादे उनके सब कमाल के, अब कमाल से डरते हैं 

एक अकेला सब पे भारी, बोल चुके जो संसद में
देख रही अब जनता उनको, प्रश्नकाल से डरते हैं

पहरे में हैं कलम, कैमरे, सख्ती सिर्फ विरोधी पर 
मकड़े जैसा जाल बुने पर, मकड़जाल से डरते हैं 

सुमन घरौंदा बालू जैसा, सदा झूठ का बनता है 
ढाल अभी तक जिसे बनाया, उसी ढाल से डरते हैं
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