Sunday, March 26, 2023

पर संसद को Mute करे हो

बातें कितनी Cute करे हो
पर संसद को Mute करे हो

धर्म, सियासत चालाकी से 
जनता में Dilute करे हो

लोगों को गफलत में रखने
गलत खबर भी Twit करे हो

बेलगाम अपने नेता को
अवसर पे Unmute करे हो

कहते जिसको भ्रष्ट आजतक 
मतलब से Salute करे हो

तुझे प्यार अपनी फोटो से 
हर मौके पर Shoot करे हो

जो भी पक्ष सुमन जनता का
क्योंकर उसको Hoot करे हो 

अगर देश से प्रीत

सत्ता सबको चाहिए, लगा रहे सब जोर।
जनहित से मतलब नहीं, पर जनहित का शोेर।।

जीत मिलेगी किस तरह, सदा चुनावी खेल।
प्रश्न उठाते जो सही, अब जाते हैं जेल।।

तानाशाही बढ़ रही, लोकतंत्र हैरान।
क्या शासक इन्सान को, अब समझे इन्सान??

लोकतंत्र पर हो रहा, रोज गुरिल्ला वार।
बंद करे संसद अभी, अपनी ही सरकार।।

प्रजा, नागरिक भेद को, कब समझोगे मीत?
लोकतंत्र, संसद बचा, अगर देश से प्रीत।।

सदा विपक्षी, मीडिया, हो जनता के साथ।
मगर मीडिया सर अभी, है सरकारी हाथ।।

वैचारिकता मर रही, सुमन दुखद संयोग।
क्या उपयोगी है कभी, भूखे खातिर योग??

Wednesday, March 15, 2023

ईंट ईंट को जोड़ना

नर नारी का भेद क्यों, नहीं उमर की बात।
घर के मुखिया के हृदय, हो विवेक जज्बात।।

सबको घर इक चाहिए, घर अपनी पहचान।
हैं मकान लाखों मगर, घर कितने श्रीमान??

घर टूटे तो टूटता, सब आपस का प्यार।
बिना प्यार किसका बना, सुन्दर सा संसार??

सबमें गुण दुर्गुण मगर, विकसित अगर विवेक।
भले झोपड़ी ही सही, घर बन जाता नेक।।

ईंट ईंट को जोड़ना, इसमें कितना दर्द?
घर के मुखिया के लिए, अन्त कौन हमदर्द??

मुखिया मुख सों चाहिए, घर हो चाहे देश।
सहयोगी परिजन मिले, तब सुन्दर परिवेश।।

चाहत एक सलाह की, मिले सुमन भरमार।
घर के मतलब को समझ, तब समझोगे प्यार।।

एक अकेला सब पे भारी

हुई घोषणा ये सरकारी
एक अकेला सब पे भारी

जो सवाल शासन से पूछे
झट कहते, करता गद्दारी

लोकतंत्र के सभी तंत्र की
छीनी सत्ता ने मुख्तारी

धन - कुबेर, सत्ताधीशों की
अपनी अपनी हिस्सेदारी

कुचल रहे जो संविधान को
उसकी कैसी जय जयकारी

आम लोग ही चुनते शासक
मत भूलो, ऐ! सत्ताधारी

लोक जागरण करते रहना
सुमन कलम की जिम्मेवारी

Tuesday, February 7, 2023

झूठ बोलना जारी रखिए

सब मंहगा है सस्ती जान
मुश्किल है बचना ईमान
फिर भूखे बेबस क्यों बोलें  
अपना भारत देश महान 
लेकिन जनता को भरमाने
सब खबरें सरकारी रखिए
झूठ बोलना जारी रखिए

          कथनी, करनी में जो भेद 
          तनिक नहीं शासक को खेद
          अब लोगों को लगा है दिखने
          जगह जगह शासन का छेद
          संवैधानिक सभी तंत्र पर
          छुप छुपके से मुख्तारी रखिए
          झूठ बोलना -----

शिक्षा और चिकित्सा घायल
कुछ कुबेर घर बजती पायल
फिर भी जो वैचारिक अंधे
वर्तमान सत्ता के कायल 
जो शासक की भाषा बोले
वैसे ही अधिकारी रखिए
झूठ बोलना -----

          जो सच बोले उनको डांटे 
          सुविधा - भोगी को भी छांटे
          फिर प्रचार करके जनता को
          मजहब और नफरत से बांटे
          अपना ही गुणगान कराने
          सदा कवि दरबारी रखिए
          झूठ बोलना -----

पता नहीं कैसा विकास है
आम लोग जिसमें उदास है
पर शासन के विज्ञापन में
सभी समस्या अब खलास है
सबकी पीड़ा सुनने खातिर
जरा सुमन दिलदारी रखिए
झूठ बोलना -----
हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!