Saturday, October 8, 2011

देख मेरा मन रोता है

पढ़े - लिखे  लोगों  की हालत, देख मेरा मन रोता है
लेखन में  साजिश  की नीयत, देख मेरा मन रोता है

जिसकी नीयत जैसी होगी, आगे नियति वही बनती
पर  छोड़े  न  बुरी  जो  आदत, देख मेरा मन रोता है

कोमल भाव हृदय में जिनके, वही काव्य रच पाते हैं
गुपचुप  इक दूजे से शिकायत, देख मेरा मन रोता है

नित बेहतर कैसे हो दुनिया, यह साहित्य सिखाता है  
अपनी मिल्लत कहाँ सलामत, देख मेरा मन रोता है

वार अगर करना हो लाजिम, करो सुमन से वार वहाँ
शीशे  पे  पत्थर  की  इनायत,  देख मेरा मन रोता है

16 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कितना कुछ तो सह लेता है, फिर भी यह मन रोता है।

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद
सहज सौम्यता जिस दिल में हो वही काव्य रच पाते हैं
इक दूजे से क्यूँ है शिकायत देख मेरा मन रोता है

लाजवाब

आप अपने भाव गीत गजल में
हम आसूनों में बहा देतें हैं

Udan Tashtari said...

सही है...मन रोता तो है...

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

SAJAN.AAWARA said...

बेहतर से बेहतर दुनिया हो यह साहित्य सिखाता है
यहाँ प्यार ही नहीं सलामत देख मेरा मन रोता है

padhkar achcha laga.
jai hind jai bharat

गुड्डोदादी said...

देख मेरा मन रोता है
पढ़े लिखे लोगों की हालत देख मेरा मन रोता है
कविता में बदले की नीयत देख मेरा मन रोता है

जिसकी जैसी होती नीयत वही नियति का कारण भी
नहीं छोड़ते फिर भी आदत देख मेरा मन रोता है

सहज सौम्यता जिस दिल में हो वही काव्य रच पाते हैं
इक दूजे से क्यूँ है शिकायत देख मेरा मन रोता है

बेहतर से बेहतर दुनिया हो यह साहित्य सिखाता है
यहाँ प्यार ही नहीं सलामत देख मेरा मन रोता है

वार अगर करना हो लाजिम करो सुमन से वार वहां
शीशे पे पत्थर की इनायत देख मेरा मन रोता है
posted by श्यामल सुमन at 4:16 AM on Oct 8, 2011
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RAJESH KASHYAP 9650599052 bahut bahut sunder dadi kya baat hai dadi 8:22 AM guddo dadi माँ की शिक्षा संस्कार कवि श्यामल जी की सहमति से अनुसरण 8:22 AM SIYA Agrawal BAHUT HI ACCHI BATE HAI DADI JI
पढ़े लिखे लोगों की हालत देख मेरा मन रोता है 8:25 AM guddo dadi माँ की शिक्षा संस्कार साहित्य प्रेमी जन
आशीर्वाद के साथ धन्यवाद
कवि श्यामल सुमन जी सहमती से अनुसरण

Sunil Kumar said...

लाजवाब .........

सूर्यकान्त गुप्ता said...

लाज़वाब! सहज सौम्यता जिस दिल में हो वही काव्य रच पाते हैं;
इक दूजे से क्यूँ है शिकायत देख मेरा मन रोता है
भावों का सुंदर चित्रण…।

विभूति" said...

बेहतरीन प्रस्तुती.....

दीपक बाबा said...

शीशे पे पत्थर की इनायत देख मेरा मन रोता है

रंजना said...

संवेदनशील हृदय सचमुच कहाँ सम्हाल पाता है ऐसे अवस्थाओं में स्वयं को...

संवेदनशील रचना...

Anonymous said...

मै भी अकेली ,मेरी आँखों का आँसू भी अकेला

फिर तुम्हारी याद आयी और आँसू बह निकला

अनुपमा पाठक said...

सहज सौम्यता जिस दिल में हो वही काव्य रच पाते हैं
सच है!

Asha Joglekar said...

कितना सही कहा आपने ।
पर बहुत लोग हैं जो आपका उत्साह बढाते हैं । उन्हें किसीसे शिकायत नही ।

निर्झर'नीर said...

पढ़े लिखे लोगों की हालत देख मेरा मन रोता है
रचना में बदले की नीयत देख मेरा मन रोता है


bahut hi sundar lagi ye panktiya ..

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

padhe likhe logon ki halat dekh mera man rota hai ,sahi lika hai

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