Saturday, November 2, 2013

दीप जला दो एक

दीप जले हर देहरी, पसरे सतत प्रकाश।
ज्ञान बढ़े उम्मीद का, खुला रहे आकाश।।

आपस में अपनत्व का, क्या होता है मोल।
दीपों की माला हमे, सिखलाती बिनु बोल।।

तमसो मा ज्योतिर्गमय, प्रायः कहते लोग।
पर जीवन व्यवहार में, वही तमस है रोग।।

बैर भाव सबका मिटे, लोग बने सज्ञान।
दीप जले इस भाव का, यही उचित है मान।।

कितने घर जगमग सुमन, जलते दीप अनेक।
है पड़ोस में तम अगर, दीप जला दो एक।।

8 comments:

समयचक्र said...

दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं ....

रविकर said...

पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||

वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी

गावदी = मूर्ख / अबोध

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह! क्या बात है! फिर आई दीवाली
आपको दीपावली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति।
--
प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।

Guzarish said...

नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [4.11.2013]
चर्चामंच 1419 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया

Guzarish said...

नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [4.11.2013]
चर्चामंच 1419 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर रचना !
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!

श्यामल सुमन said...

सर्व श्री / श्रीमती / सुश्री कुलदीप ठाकुर जी, महेन्द्र मिश्र जी, रविकर जी रूपचंद शास्त्री जी, चन्दर् भूषण मिश्र गाफिल जी, कलीपद प्रसाद जी, सरिता भाटिया जी - आप सबकी सराहना और समर्थन प्रेरक है मेरे लिए। सरिता जी ने इस पोस्ट को चर्चामंच से जोड़कर इसे और विस्तार दिया है। आप सबके प्रति विनम्र आभार

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