हृदय - खेत  में अंकुरित, सुमन प्रेम के बीज।।
काँटे  चुभते  हैं  मगर,  सदा   प्रेम   है फूल।
आजतलक किसके लिए, प्रेम रहा अनुकूल??
मौन  मुखर  है  प्रेम  में, मत पीटो  तुम ढोल।
क्या  शक्कर का स्वाद है, सुन गूँगे की बोल।।
पाना  तो  कुछ भी नहीं, प्रेम त्याग का नाम।
मोल   देह  का  कुछ नहीं,  प्रेम अन्त में राम।।
राम  नाम   के  सँग  में,  होता  जीवन  अन्त।
सच्चे  किस्से  प्रेम  के,  गाते  लोग  अनन्त।।
 
 
 

3 comments:
क्या बात...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-12-2014) को "आज बस इतना ही…" चर्चा मंच 1816 पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
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