चोरी कैसे रुक सके, उठा सामने प्रश्न।
थाना ज्यों बनना शुरू, चोरों के घर जश्न।।
अस्पताल सरकार का, जाते नहीं मरीज।
अगर कहीं जाना पडे, बन जाते नाचीज।।
वफादार कुत्ता बहुत, कहते नहीं अघाय।
कुत्ते जैसी मौत हो, किसको भला सुहाय।।
सम्बोधन गदहा करे, प्रायः चलन रिवाज।
मानव के व्यवहार पर, गधे को एतराज।।
पुलिस पास मत जाइये, कहते सारे संत।
आज तलक ना हो सका, जुर्म पुलिसिया अंत।।
जंगल से बदतर हुआ, मानव सभ्य समाज।
कहता पूर्वज मैं नहीं, रो कर बन्दर आज।।
रक्षक हो जब सामने, किसको नहीं सुहाय?
मगर बुरा तब क्यों लगे, पुलिस द्वार आ जाय।।
अपनेपन के भाव में, दिया स्वजन को कर्ज।
वापस अबतक ना किया, निभा रहा है फर्ज।।
सुमन दिलासा दे उन्हें, हो कर गंजा रोय।
बाल न बांका कर सके, जौं जग बैरी होय।।
थाना ज्यों बनना शुरू, चोरों के घर जश्न।।
अस्पताल सरकार का, जाते नहीं मरीज।
अगर कहीं जाना पडे, बन जाते नाचीज।।
वफादार कुत्ता बहुत, कहते नहीं अघाय।
कुत्ते जैसी मौत हो, किसको भला सुहाय।।
सम्बोधन गदहा करे, प्रायः चलन रिवाज।
मानव के व्यवहार पर, गधे को एतराज।।
पुलिस पास मत जाइये, कहते सारे संत।
आज तलक ना हो सका, जुर्म पुलिसिया अंत।।
जंगल से बदतर हुआ, मानव सभ्य समाज।
कहता पूर्वज मैं नहीं, रो कर बन्दर आज।।
रक्षक हो जब सामने, किसको नहीं सुहाय?
मगर बुरा तब क्यों लगे, पुलिस द्वार आ जाय।।
अपनेपन के भाव में, दिया स्वजन को कर्ज।
वापस अबतक ना किया, निभा रहा है फर्ज।।
सुमन दिलासा दे उन्हें, हो कर गंजा रोय।
बाल न बांका कर सके, जौं जग बैरी होय।।

1 comment:
अति सुंदर रचना
Post a Comment