अपने दिल को निकाल रक्खा है
गीत, गजलों को पाल रक्खा है
किसी के दिल में वो उतरता जो
आँखों में आँख डाल रक्खा है
साथ उसके नहीं कोई जाता
जिसने दिल में मलाल रक्खा है
चलते चलते अगर गिरे कोई
मैंने उसको सम्भाल रक्खा है
कल तो आता नहीं कभी फिर क्यूँ
फैसला कल पे टाल रक्खा है
काम का नूर दिखता आँखों में
क्यूँ बजाने को गाल रक्खा है
सोच करके सुमन भी ये सोचा
कुछ तो जिन्दा सवाल रक्खा है
गीत, गजलों को पाल रक्खा है
किसी के दिल में वो उतरता जो
आँखों में आँख डाल रक्खा है
साथ उसके नहीं कोई जाता
जिसने दिल में मलाल रक्खा है
चलते चलते अगर गिरे कोई
मैंने उसको सम्भाल रक्खा है
कल तो आता नहीं कभी फिर क्यूँ
फैसला कल पे टाल रक्खा है
काम का नूर दिखता आँखों में
क्यूँ बजाने को गाल रक्खा है
सोच करके सुमन भी ये सोचा
कुछ तो जिन्दा सवाल रक्खा है
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-07-2018) को "कुछ और ही है पेट में" (चर्चा अंक-3343) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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