Wednesday, September 26, 2018

उड़ान

जिन्दगी है तो सपने भी हैं
और सपनों में उड़ान भी।
उड़ान चिड़ियों की तरह,
या फिर बैलून की तरह?

चिड़ियाँ कोशिश करतीं हैं
अपने पंखों और
हौसले से उड़ान भरतीं हैं।
बीच बीच में रुककर,
खुले आकाश में अपनी
मर्जी से उड़तीं हैं।

लेकिन बैलून!
उसकी अपनी कोई मर्जी नहीं।
उसमें हाइड्रोजन भरकर,
एक बार, हाँ! बस एक ही बार,
 उड़ने के लिए
विवश किया जाता है
और बैलून आकाश में,
खास ऊचाई पर फट जाता है।

अब हमें तय करना है
अपनी अपनी जिन्दगी में कि
हम चिड़ियों की तरह
उड़ान भरें
या बैलून की तरह? 

No comments:

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!