चौकीदारी सबकी अपनी फिर काहे का शोर है
कोई कहता संत उसे तो कोई कहता चोर है
हर चुनाव में लेकर आते नए पिटारे वादों का
सचमुच अच्छा किसे मान लें उलझन भी घनघोर है
छिड़ी लड़ाई है मंचों पर भाषा में तल्खी ऐसी
कहना मुश्किल हुआ आजकल कौन बड़ा मुँहजोर है
बहस हमेशा जारी रहती समाचार जब जब देखो
निर्णय करना ये मुश्किल कि अभी साँझ या भोर है
छली गयी है जनता अबतक चाल सियासी में फँसकर
सुमन जगाओ लोक चेतना जहाँ जहाँ कमजोर है
कोई कहता संत उसे तो कोई कहता चोर है
हर चुनाव में लेकर आते नए पिटारे वादों का
सचमुच अच्छा किसे मान लें उलझन भी घनघोर है
छिड़ी लड़ाई है मंचों पर भाषा में तल्खी ऐसी
कहना मुश्किल हुआ आजकल कौन बड़ा मुँहजोर है
बहस हमेशा जारी रहती समाचार जब जब देखो
निर्णय करना ये मुश्किल कि अभी साँझ या भोर है
छली गयी है जनता अबतक चाल सियासी में फँसकर
सुमन जगाओ लोक चेतना जहाँ जहाँ कमजोर है
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