नये नये परिधान पहनकर वो मुस्काते टी वी में
जनता भूखी पर शहनाई रोज सुनाते टी वी में
समाचार देखूँ तो आफत, ना देखूँ तो आफत है
बार बार क्यों एक ही चेहरा वो दिखलाते टी वी में
जिस रोटी से जीवन चलता उस रोटी की किल्लत है
खाना पौष्टिक कैसे बनता कला सिखाते टी वी में
हो सकता है सब कुछ मुमकिन खास आदमी आए तो
रोज रोज क्यों इसी बात को वे दुहराते टी वी में
कद्दू और चाकू का रिश्ता हरदम घाटा कद्दू को
सभी सुमन समझे ना ये सच नित बहकाते टी वी में
समाचार देखूँ तो आफत, ना देखूँ तो आफत है
बार बार क्यों एक ही चेहरा वो दिखलाते टी वी में
जिस रोटी से जीवन चलता उस रोटी की किल्लत है
खाना पौष्टिक कैसे बनता कला सिखाते टी वी में
हो सकता है सब कुछ मुमकिन खास आदमी आए तो
रोज रोज क्यों इसी बात को वे दुहराते टी वी में
कद्दू और चाकू का रिश्ता हरदम घाटा कद्दू को
सभी सुमन समझे ना ये सच नित बहकाते टी वी में
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