अभी चुनावी गरमी के सँग, मौसम कितना गरम हुआ
लोग सियासी गली - गली में, बड़बोला - बेशरम हुआ
नहीं खोलते कभी जुबां वो, काम हुआ क्या जनहित में
प्रतिद्वंदी को बस गरियाना, शायद उनका धरम हुआ
दशकों पहले की आजादी, क्या पहुँची है गाँव तलक
हर तंत्रों पे अंकुश इनका, और कुशासन चरम हुआ
मिल के साथ सभी मजहब के, हम जीते हैं सदियों से
नफरत बो कर ताज पहनना, इनका पहला करम हुआ
अब तो सोचो मिलके यारों, हुआ भला है क्यूँ ऐसा
लोक-जागरण सुमन-धर्म है, करम यही बस परम हुआ
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