यूँ बढ़ा आपसी प्यार, हमारे आँगन में।
नित होती अब तकरार, हमारे आँगन में।।
है बात कोई समझाना, दो प्यार के बोल सुनाएं।
तुम गला दबा समझाओ, हम प्यार से गले लगाएं।
क्यूँ बाँट रहे दुत्कार, हमारे आँगन में।
नित होती अब -----
तू समाचार के चेहरे, हमरी बातों पे पहरे।
तुम रोज हमें दिखलाते, क्यूँ झूठे ख्वाब सुनहरे?
क्या उचित यही व्यवहार, हमारे आँगन में
नित होती अब -----
जो जीते जी हैं मरते, वो मरने से नहीं डरते।
है वक्त सुमन सहलाओ, कुछ बेहतर क्यूँ नहीं करते?
क्या मुखिया ही बीमार, हमारे आँगन में।
नित होती अब -----
नित होती अब तकरार, हमारे आँगन में।।
है बात कोई समझाना, दो प्यार के बोल सुनाएं।
तुम गला दबा समझाओ, हम प्यार से गले लगाएं।
क्यूँ बाँट रहे दुत्कार, हमारे आँगन में।
नित होती अब -----
तू समाचार के चेहरे, हमरी बातों पे पहरे।
तुम रोज हमें दिखलाते, क्यूँ झूठे ख्वाब सुनहरे?
क्या उचित यही व्यवहार, हमारे आँगन में
नित होती अब -----
जो जीते जी हैं मरते, वो मरने से नहीं डरते।
है वक्त सुमन सहलाओ, कुछ बेहतर क्यूँ नहीं करते?
क्या मुखिया ही बीमार, हमारे आँगन में।
नित होती अब -----
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