जब जब कलम बनी है चारण तब तब एक कमाल हुआ
कल-कल, छलछल, निर्मल गंगा का पानी भी लाल हुआ
कहीं पे लालच, कहीं पे डर से कलम जहां भी झुकती है
पढ़कर ये इतिहास को समझो देश वही कंगाल हुआ
कलम के जिम्मे है समाज की रखवाली करते रहना
और जगाना लोगों को भी जब जब खड़ा सवाल हुआ
कलम रो रही आज देखकर बदली हुई सियासत को
था फकीर जो कलम बेचकर यारों मालामाल हुआ
रस्ता कठिन कलम का भाई सोच समझकर थाम इसे
लोक-जागरण करते करते हाल सुमन बेहाल हुआ
कल-कल, छलछल, निर्मल गंगा का पानी भी लाल हुआ
कहीं पे लालच, कहीं पे डर से कलम जहां भी झुकती है
पढ़कर ये इतिहास को समझो देश वही कंगाल हुआ
कलम के जिम्मे है समाज की रखवाली करते रहना
और जगाना लोगों को भी जब जब खड़ा सवाल हुआ
कलम रो रही आज देखकर बदली हुई सियासत को
था फकीर जो कलम बेचकर यारों मालामाल हुआ
रस्ता कठिन कलम का भाई सोच समझकर थाम इसे
लोक-जागरण करते करते हाल सुमन बेहाल हुआ
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