कृषक-हाल देखकर,
वादों में लपेटकर।
तुम मना रहे खुशी,
रौशनी को कैद कर।
प्रकाश-पर्व!
अँधकार बढ़ रहा,
हाल भी बिगड़ रहा।
जुल्म और करने को,
कहानियाँ भी गढ़ रहा।
प्रकाश-पर्व!
हाल जन का खास्ता
शासक को नहीं वास्ता
अँधेरे को मिटाना है
बस रौशनी से रास्ता
प्रकाश-पर्व!
तुम जगे को छाँटते
मंच पर भी डाँटते
ले के नाम धर्म का
भाईयों को बाँटते
प्रकाश-पर्व!
जाग देशवासियों
छात्र और सिपाहियों
जुल्म सहो और मत
गाँव के निवासियों
प्रकाश-पर्व!
साथ सुमन आएंगे
जुल्म को मिटाएंगे
अगली पीढ़ी के लिए
रौशनी जलाएंगे
प्रकाश-पर्व!

1 comment:
राजनेता बांटने का काम सदियों से करते आये हैं।
बस हम इनके नए नए तरीकों में फंस जाते हैं।
अब हम सम्पूर्णतः जागना होगा।
बहुत शानदार रचना।
नई रचना- समानता
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