Friday, December 25, 2020

काली रातों में हम दीपक

हम तेरे  क्या  दुश्मन शासक?
ये भी मत समझो कि याचक!
कलम-धर्म को निष्ठा से हम, नित्य निभाते हैं।
लोक - जागरण -यज्ञ भाव के, गीत सुनाते हैं।।

राजा तुमको लोग बनाते, जिस पे तुम अब हुकुम चलाते।
खुद  को  ही  सर्वज्ञ  मानकर, बाकी सबको व्यर्थ बताते।
अहंकार  के  नशे  में  जो भी, उसे जगाते हैं।
लोक-जागरण-यज्ञ भाव -----

लोकतंत्र  में शासक बदले, आज हो तुम था कोई पहले।
डर  है अपना  कल  जो  होगा, न निकले नहले पे दहले।
हम समाज के पक्ष में अंकुश, उसे लगाते हैं।
लोक-जागरण-यज्ञ भाव -----

जब  अच्छा  परिवेश  रहेगा, तब  समाज या देश रहेगा।
आने   वाली  पीढ़ी  खातिर,  नेक  सुमन  संदेश  रहेगा।
काली रातों  में  हम  दीपक, लेकर आते हैं।
लोक-जागरण-यज्ञ भाव -----

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