ऊधम मचाना बस कीचड़ में, और भींगना पानी में।
कहाँ गए वो दिन बारिश के, पढ़ते जिसे कहानी में?
जहाँ जोर से हवा चली तो, हम सब दौड़े जंगल को।
जामुन, आम वहाँ चुनते यूँ, मानो निकले दंगल को।
बचपन का अल्हड़पन कायम, चढ़ती हुई जवानी में।
कहाँ गए वो दिन -----
मछली खेतों तक आती जब, गिरता पानी बारिश का।
छुपा-छुपा उसको चुन लाना, हिस्सा अपनी साज़िश का।
क्या लौटेगी कभी खुशी जो, यादों भरी निशानी में?
कहाँ गए वो दिन -----
तालाबों में खूब उमकना, भले डाँट सुन लेते थे।
खेल, पढ़ाई दोनों को हम, खुशी - खुशी चुन लेते थे।
आज सुमन महसूस करे जो, कहना कठिन बयानी में।
कहाँ गए वो दिन -----
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