Thursday, July 22, 2021

गढ़ता समरस एक समाज

जिसने अपनी सोच संवारा, गढ़ता समरस एक समाज।
करता सबके साथ गुजारा, गढ़ता समरस एक समाज।

धर्मों की दीवार तोड़, जो मानवता को माने।
फिर सवाल पूछे कमियों पर जिसको बेहतर जाने।
करता खुद को नहीं किनारा, गढ़ता समरस एक समाज।
जिसने अपनी सोच -----

चुन लेते ऐसे लोगों को, जो माहौल बिगाड़े।
फिर प्रमाण के साथ उसे वो सबके बीच लताड़े।
खुद को सबके बीच उतारा, गढ़ता समरस एक समाज।
जिसने अपनी सोच -----

आमलोग के हित की चिन्ता, व्यक्तिवाद से दूरी।
आनेवाला कल बेहतर हो, चाहे जो मजबूरी।
बनता इक दिन सुमन सितारा, गढ़ता समरस एक समाज।
जिसने अपनी सोच -----

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