Thursday, July 22, 2021

समझ इसे आगाज

लोक-लुभावन वादे नारे, करके भ्रमित समाज।
फिर भोली जनता ने उनको, सौंपा दिया है ताज।
सैंयां! झूठों के सरताज।।

साथ सभी का कहाँ मिला है, न सबका विश्वास।
खोज रही जनता शिद्दत से, मिलता नहीं विकास।
कल तक झूठ जिसे कहते थे, वो सच कैसे आज?
सैंयां! झूठों के सरताज।।

बीमारी क्या, कहाँ समस्या, क्या है उचित निदान?
इस पर करें विचार स्वयं को, मत समझें भगवान।
पुरखों के धन लुटा रहे पर, होता कहाँ इलाज?
सैंयां! झूठों के सरताज।।

अपनी भूल छुपाने खातिर, करते खूब प्रचार।
हर सवाल पर क्यों सरकारी, होता अभी प्रहार?
सदियों सुमन विचार लड़ेगा, समझ इसे आगाज।
सैंयां! झूठों के सरताज।।

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