Thursday, July 22, 2021

योगासन के राज

आसन, कसरत दे हमें, रस्ते में सहयोग।
आतम, परमातम जहाँ, मिल जाए तो योग।।

पशु-जीवन से सीखकर, आसन बने अनेक।
अपनाते जिसको जहाँ, जगता हृदय विवेक।।

शामिल हैं आसन कई, करते दैनिक काज।
इसी काज में हैं छिपे, योगासन के राज।।

सदियों से इस देश में, योग-विधा का मान।
योग आज उद्योग सा, परिलक्षित श्रीमान।।

भोग छोड़कर योग से, योगी को अनुराग।
वैसे योगी, योग भी, जैसे सुमन - पराग।।

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