मँहगाई जो डायन थी पहले, बनी आज महबूबा।
दिखा रहे शासक भी करतब, करके खेल अजूबा?
बेबस जनता रोती बेचारी,
दरबारी गाए सोहर जी।।
मंद - मंद मुस्कान अधर पे, उनके वादे प्यारे।
जीने खातिर आमजनों के, छिनते गए सहारे।
पसरी घर - घर में बेकारी,
दरबारी गाए सोहर जी।।
बेबस जनता -----
पहले वाले शासक ने भी, जनता को ही लूटा।
जो अब आया वो भी लूटा, बाकी जो जो छूटा।
अभी मीडिया सभी सरकारी,
दरबारी गाए सोहर जी।।
बेबस जनता -----
अब पानी सर के ऊपर है, अपना देश बचाओ।
बचाके मिल्लत सुमन आपसी, नित परिवेश बचाओ।
बढ़ने पाए न ये बीमारी,
दरबारी गाए सोहर जी।।
बेबस जनता -----
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