जनता पिसती जा रही, शासक है आबाद।
करते  पैदा  डर  अभी, सरकारी  उत्पाद।।
केवल बातों से कहाँ, बदला कब परिवेश?
अग्नि-वीर की आग में, लगा सुलगने देश।।
जब शासक हो  सनक में, शासन टेढ़ी खीर।
अग्नि-वीर  की  योजना, लाए जुमला-वीर।।
भूख, गरीबी, नौकरी, बात  दबी  रह जाय।
इसीलिए बस धर्म की, रोज आग सुलगाय।।
सदियों से  हम  साथ  में, कहाँ  गया  वह मेल?
मन्दिर, मस्जिद का हुआ, शुरू नया नित खेल।।
सुख - दुख अपना  एक है, जी लेंगे हम साथ।
गड़बड़ जब शासन गया, अधिनायक के हाथ।।
कलम सुमन इक हाथ में, दूजे हाथ मशाल।
पूछे  जिन्दा  लोग  ही, जलते  हुए सवाल।।
 
 
 

2 comments:
I am very thankful to you for providing such a great information. It is simple but very accurate information.
वाह ! बेहतरीन शायरी
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