Saturday, July 30, 2022

जैसे दाँत अलग खाने के

तर्क  सभी  के  अपने  अपने,  खोने - पाने  के  होते
जैसे  दाँत  अलग  खाने  के, और  दिखाने  के  होते

जिन  आँखों में नहीं है पानी, उनकी दुनिया  बेमानी 
बचा  के  रखना  वो  पानी  जो, नहीं  बहाने के होते 

बच्चे  को  भी  रोने पर ही, अक्सर खाना मिलता है
रोटी  पाने  का  हक  सबको,  सभी  जमाने के होते

भले  उम्र  कोई  भी  अपनी, गलती  संभव हो जाए
वही  सीख जीवन  का  प्यारे, न  पछताने  के  होते

जिस माटी के बने  हुए हम, उस माटी की सेवा कर  
देशभक्ति  अब  शासक - सेवा, उनके  माने के होते

जब  वादे  हम  पूरे  करते, तब  रिश्ते  मजबूत  बने
वादों  की  भरमार  अभी जो, बस झुठलाने के होते 

सबसे  बड़ो समाज हमेशा, नहीं भूलना कभी सुमन 
लोक जागरण जिस समाज में, वही ठिकाने के होते

No comments:

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!