कभी कभी खुद को पढ़ने का मन करता
समझा तो खुद पे हँसने का मन करता
मंजिल छूटी जब - जब अपनी गलती से
तब खुद से ही खुद लड़ने का मन करता
आगे कुआँ कदम - कदम पीछे खाई
राह कठिन है पर चलने का मन करता
मसल दिखा के या धन से जो प्रमुख बने
बार - बार इनसे डटने का मन करता
चाहत सबकी अपने अनुभव हम बाँटें
तभी हकीकत को लिखने का मन करता
साफ करें कैसे कीचड़ को कीचड़ से
नया तरीका फिर चुनने का मन करता
अंधकार है घर - घर और महल रौशन
सुमन को दीपक बन जलने का मन करता
No comments:
Post a Comment