प्यार आपसी चटक रहा है, जुमलों के बाजार में
देश हमारा भटक रहा है, जुमलों के बाजार, में
टैक्स - वसूली जनता से जो, उस सरकारी दौलत को
एक सेठ ही गटक रहा है, जुमलों के बाजार में
वादे-नारे थे विकास के, वो विकास क्या मिला कहीं
वो विकास अब लटक रहा है, जुमलों कु बाजार में
औरंगजेबों की चर्चा से, आगे देश बढ़ेगा क्या
क्यों शासक को खटक रहा है, जुमलों के बाजार में
नशा पिलाया धरम का ऐसा, लगा रहे जयकारे जो
पेट पीठ में सटक रहा है, जुमलों के बाजार में
जो नफरत बाँटे हैं घर-घर, उसके घर बेकारी में
नौजवान सर पटक रहा है, जुमलों के बाजार में
सरोकार सामाजिक जिनके, वो सवाल तो पूछेंगे
सुमन प्रश्न क्यों अटक रहा है, जुमलों के बाजार में
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