घर के भीतर जब घर होता
तब रहने में भी डर होता
आलीशान महल हों जितने
बिना प्यार के जर्जर होता
अनुशासन बिन घर, मकान है
वहाँ कलह भी दिन भर होता
बढ़ता प्यार अगर आपस में
सहभोजन जब अक्सर होता
मान मिले उनको जिनके घर
मुखिया का नित आदर होता
क्रोधित होकर भूल छुपाना
घर - घर में यूँ कायर होता
सुमन वही घर बचता जिसमें
सबका मोल बराबर होता
No comments:
Post a Comment