कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए
कातिल जो बेगुनाह सा जीते हैं शहर में
इन्सान कौन चुनता सम्मान के लिए
मिलते हैं लोग जितने चेहरे पे शिकन है
आँखें तरस गयीं हैं मुस्कान के लिए
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
किस आईने से देखूँ हालात आज के
कुछ तो सुमन से कह दो संधान के लिए
Sunday, July 17, 2011
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8 comments:
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
खूबसूरत गज़ल
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश , बधाई
बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश , बधाई
बुझे बुझे से चेहरे दिखते,
मुस्कानों पर पहरे दिखते।
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए..
वख्त की नजाकत को बयां करती गज़ल..
बहुत बढ़िया...
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए...बहुत सुन्दर शब्दों से आपने अपने भाव को बाँधा है ...सुन्दर..अभार...
"कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए"
बिल्कुल सही कहा........बहुत ही सटीक ग़ज़ल लिखा है.
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