कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए
कातिल जो बेगुनाह सा जीते हैं शहर में
इन्सान कौन चुनता सम्मान के लिए
मिलते हैं लोग जितने चेहरे पे शिकन है
आँखें तरस गयीं हैं मुस्कान के लिए
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
किस आईने से देखूँ हालात आज के
कुछ तो सुमन से कह दो संधान के लिए
Sunday, July 17, 2011
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रचना में विस्तार
साहित्यिक बाजार में, अलग अलग हैं संत। जिनको आता कुछ नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक मैदान म...
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
8 comments:
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
खूबसूरत गज़ल
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश , बधाई
बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश , बधाई
बुझे बुझे से चेहरे दिखते,
मुस्कानों पर पहरे दिखते।
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए..
वख्त की नजाकत को बयां करती गज़ल..
बहुत बढ़िया...
पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए...बहुत सुन्दर शब्दों से आपने अपने भाव को बाँधा है ...सुन्दर..अभार...
"कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए"
बिल्कुल सही कहा........बहुत ही सटीक ग़ज़ल लिखा है.
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