Sunday, July 17, 2011

बेकल है आज दुनिया

कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए

कातिल जो बेगुनाह सा जीते हैं शहर में
इन्सान कौन चुनता सम्मान के लिए

मिलते हैं लोग जितने चेहरे पे शिकन है
आँखें तरस गयीं हैं मुस्कान के लिए

पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए

किस आईने से देखूँ हालात आज के
कुछ तो सुमन से कह दो संधान के लिए

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए

खूबसूरत गज़ल

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

Sunil Kumar said...

पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए
बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश , बधाई

Sunil Kumar said...

बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश , बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

बुझे बुझे से चेहरे दिखते,
मुस्कानों पर पहरे दिखते।

राजेन्द्र अवस्थी said...

पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए..

वख्त की नजाकत को बयां करती गज़ल..

बहुत बढ़िया...

Maheshwari kaneri said...

पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए...बहुत सुन्दर शब्दों से आपने अपने भाव को बाँधा है ...सुन्दर..अभार...

Kusum Thakur said...

"कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए"


बिल्कुल सही कहा........बहुत ही सटीक ग़ज़ल लिखा है.

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