Sunday, December 4, 2011

एक बार फिर तुतलाना है

पथ  जीवन का अनजाना है
फिर भी जाना - पहचाना है

माने खुद को समझदार सब 
क्या समझे को समझाना है

काश अगर बचपन आ जाए
एक  बार  फिर  तुतलाना  है

क्यों  रकीब अपने बन जाते
घर - घर  का ये अफ़साना है

कौन  देखता  मेल दिलों का
हाथ  मिलाते  दिखलाना  है

आँगन   में  जो   भी   दीवारें
सोचो    कैसे    तुड़वाना   है

जो  बिन  सोचे कदम उठाते 
उनको  निश्चित  पछताना  है

जीवन में सुख-दुख दोनों पर 
कोशिश  हर पल मुस्काना है

घटे  नहीं  रिश्तों  की  गरमी 
प्रेम  सुमन  ताना - बाना  है

12 comments:

vandana gupta said...

कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुडवाना है

सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना ह………………हमेशा की तरह शानदार जीवन दर्शन कराती गज़ल्।

Kailash Sharma said...

क्यों रकीब अपने बन जाते
घर घर का ये अफ़साना है

मेल दिलों का कौन देखता
हाथ मिलाते दिखलाना है

...बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

क्यों रकीब अपने बन जाते
घर घर का ये अफ़साना है

मेल दिलों का कौन देखता
हाथ मिलाते दिखलाना है

घटती रिश्तों की गरमाहट
सुमन प्रीत नित सिखलाना है

बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली ... बहुत खूबसूरत सोच के साथ सुन्दर रचना

Anju (Anu) Chaudhary said...

समझदार खुद को सब कहते
समझे को क्या समझाना है

क्यों रकीब अपने बन जाते
घर घर का ये अफ़साना है

katu saty.....aaj har ghar kii ye hi kahani hai ......aabhar

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुडवाना है

सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना है

सुन्दर ग़ज़ल सर...
सादर...

प्रवीण पाण्डेय said...

कितनी सुन्दर गजल लिखी है,
हमको यह बतलाना है।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!

kshama said...

कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुड़वाना है

सोच बिना जो कदम बढ़ाते
आगे निश्चित पछताना है
Waise to pooree rachana kamaal kee hai,lekin ye panktiyan to gazab kee hain!

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद

कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुडवाना है

सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना है
क्या लिख्हूँ
कोरवों पांडवो के समय की दीवारें भी टूटी
यह झगडा पुराना है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय श्यामल सुमन जी
नमस्कार !

सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना है

वाह ! जीवन का पूरा दर्शन ही समझा दिया आपने … साधुवाद !

सुंदर रचना के लिए बधाई !


मंगलकामनाओं सहित…

- राजेन्द्र स्वर्णकार

विभूति" said...

कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

***Punam*** said...

समझदार खुद को सब कहते
समझे को क्या समझाना है

काश अगर बचपन आ जाए
एक बार फिर तुतलाना है

bas itna hi kafi hai....
sundar..bahut sundar..!!

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