पथ जीवन का अनजाना है
फिर भी जाना - पहचाना है
माने खुद को समझदार सब
क्या समझे को समझाना है
काश अगर बचपन आ जाए
एक बार फिर तुतलाना है
क्यों रकीब अपने बन जाते
घर - घर का ये अफ़साना है
कौन देखता मेल दिलों का
हाथ मिलाते दिखलाना है
आँगन में जो भी दीवारें
सोचो कैसे तुड़वाना है
जो बिन सोचे कदम उठाते
उनको निश्चित पछताना है
जीवन में सुख-दुख दोनों पर
कोशिश हर पल मुस्काना है
घटे नहीं रिश्तों की गरमी
प्रेम सुमन ताना - बाना है
12 comments:
कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुडवाना है
सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना ह………………हमेशा की तरह शानदार जीवन दर्शन कराती गज़ल्।
क्यों रकीब अपने बन जाते
घर घर का ये अफ़साना है
मेल दिलों का कौन देखता
हाथ मिलाते दिखलाना है
...बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...
क्यों रकीब अपने बन जाते
घर घर का ये अफ़साना है
मेल दिलों का कौन देखता
हाथ मिलाते दिखलाना है
घटती रिश्तों की गरमाहट
सुमन प्रीत नित सिखलाना है
बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली ... बहुत खूबसूरत सोच के साथ सुन्दर रचना
समझदार खुद को सब कहते
समझे को क्या समझाना है
क्यों रकीब अपने बन जाते
घर घर का ये अफ़साना है
katu saty.....aaj har ghar kii ye hi kahani hai ......aabhar
कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुडवाना है
सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना है
सुन्दर ग़ज़ल सर...
सादर...
कितनी सुन्दर गजल लिखी है,
हमको यह बतलाना है।
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुड़वाना है
सोच बिना जो कदम बढ़ाते
आगे निश्चित पछताना है
Waise to pooree rachana kamaal kee hai,lekin ye panktiyan to gazab kee hain!
श्यामल
आशीर्वाद
कितनी दीवारें आँगन में
सोचो कैसे तुडवाना है
सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना है
क्या लिख्हूँ
कोरवों पांडवो के समय की दीवारें भी टूटी
यह झगडा पुराना है
आदरणीय श्यामल सुमन जी
नमस्कार !
सुख दुःख तो आते जीवन में
कोशिश हर पल मुस्काना है
वाह ! जीवन का पूरा दर्शन ही समझा दिया आपने … साधुवाद !
सुंदर रचना के लिए बधाई !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
समझदार खुद को सब कहते
समझे को क्या समझाना है
काश अगर बचपन आ जाए
एक बार फिर तुतलाना है
bas itna hi kafi hai....
sundar..bahut sundar..!!
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