Thursday, October 17, 2013

आती अब बारात नहीं

मन में झंझावात नहीं
 पर आपस में बात नहीं

भाव नहीं चेहरे पर दिखते
क्या दिल में जज्बात नहीं

मौसम हो बारिश का चाहे
आँखों में बरसात नहीं

जिम्मेवारी की उलझन में
आती वैसी रात नहीं

मनमाफिक हालात बना ले
ये सबकी औकात नहीं

आसानी से अक्सर कहते
वैसे अब हालात नहीं

सुमन हृदय में अपनापन ले
आती अब बारात नहीं

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन,सुंदर गजल !

RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

kuldeep thakur said...

सुंदर रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
आप की ये खूबसूरत रचना आने वाले शनीवार यानी 19/10/2013 को ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक की गयी है...

सूचनार्थ।

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल
नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
latest post महिषासुर बध (भाग २ )

Unknown said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल |

मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

sundar rachna .. shubhkamnaye :)

Nitish Tiwary said...

bahut sundar gazal hai
mere blog par bhi aap sabhi ka swagat hai.
http://iwillrocknow.blogspot.in/

प्रवीण पाण्डेय said...

कह बहरों से गहरी बातें।

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!