जिसे जरूरत जितनी कम है
उसमें उतना ही दमखम है
कहीं आँख का पानी आँसू
कहीं कहीं पर वो शबनम है
माँ, गिनती में इन्द्राणी सी
बाकी तो सचमुच मरियम है
भौतिकता की चाहत जितनी
वो रहता उतना बेदम है
रोज तरक्की करती दुनिया
पर आँखो में पानी कम है
लोग बदलते रहते जैसे
वैसे बदल रहा मौसम है
नहीं निराशा कभी सुमन को
बदलेगा अब जो आलम है
उसमें उतना ही दमखम है
कहीं आँख का पानी आँसू
कहीं कहीं पर वो शबनम है
माँ, गिनती में इन्द्राणी सी
बाकी तो सचमुच मरियम है
भौतिकता की चाहत जितनी
वो रहता उतना बेदम है
रोज तरक्की करती दुनिया
पर आँखो में पानी कम है
लोग बदलते रहते जैसे
वैसे बदल रहा मौसम है
नहीं निराशा कभी सुमन को
बदलेगा अब जो आलम है
3 comments:
रोज तरक्की करती दुनिया
पर आंखो में पानी कम है
बहुत खूब...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सियाचिन के परमवीर - नायब सूबेदार बाना सिंह - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही सुन्दर रचना
Post a Comment