Sunday, January 3, 2016

पर आँखो में पानी कम है

जिसे जरूरत जितनी कम है
उसमें उतना ही दमखम है

कहीं आँख का पानी आँसू
कहीं कहीं पर वो शबनम है

माँ, गिनती में इन्द्राणी सी
बाकी तो सचमुच मरियम है

भौतिकता की चाहत जितनी
वो रहता उतना बेदम है

रोज तरक्की करती दुनिया
पर आँखो में पानी कम है

लोग बदलते रहते जैसे
वैसे बदल रहा मौसम है

नहीं निराशा कभी सुमन को
बदलेगा अब जो आलम है



3 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

रोज तरक्की करती दुनिया
पर आंखो में पानी कम है
बहुत खूब...

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सियाचिन के परमवीर - नायब सूबेदार बाना सिंह - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

हिमांशु पाण्‍डेय said...

बहुत ही सुन्दर रचना

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