Thursday, May 17, 2012

जड़ना वही नगीना सीखा

जिसने दुःख में जीना सीखा
जड़ना वही नगीना सीखा

फटेहाल जीवन की गाथा
चिथड़ों को भी सीना सीखा

जीवन को भवसागर कहते
कैसे चले सफीना सीखा

जीवित रहना कम साधन में
सालों साल महीना सीखा

कितने कम हैं खुशियों के पल 
जहर ग़मों का पीना सीखा

बिना परिश्रम भोग, रोग है
निकले सदा पसीना सीखा

चाल अघोषित है जीवन की
नूतन सुमन करीना सीखा

14 comments:

Anupama Tripathi said...

जिसने दुःख में जीना सीखा
जड़ना वही नगीना सीखा
sarthak sandesh deti rachna ....!!

प्रवीण पाण्डेय said...

जिसने दुःख में जीना सीखा
जड़ना वही नगीना सीखा

सच का नगीना..

lata said...

Bahut hi shashwat soch se bharpoor hai apki yah rachna

lata said...

Bahut hi shashwat soch se bharpoor hai apki yah rachna

Shah Nawaz said...

कितने कम हैं खुशियों के पल
जहर ग़मों का पीना सीखा


वाह! बहुत ही बेहतरीन लाइन.....

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...
कितने कम हैं खुशियों के पल
जहर ग़मों का पीना सीखा

बहुत सुंदर.

सादर.

गुड्डोदादी said...

श्यामल
सदा सुखी रहो

कितने कम हैं खुशियों के पल
जहर ग़मों का पीना सीखा

खुशियाँ है चार दिन की
गम हैं उम्र भर के (आगे नहीं लिखा जा >>)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह!!!!बहुत बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,,,,

कितने कम हैं खुशियों के पल
जहर ग़मों का पीना सीखा,,,,,

MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिना परिश्रम भोग, रोग है
निकले सदा पसीना सीखा


बहुत सुंदर ...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

क्या बात है! वाह! दहला है जी! दहला नहला नहीं

M VERMA said...

जिसने दुःख में जीना सीखा
जड़ना वही नगीना सीखा

जीना खुद नगीना है

Rajesh Kumari said...

vaah ....lajabaab ....awesome lines

लोकेन्द्र सिंह said...

आपकी इस रचना में jeevan का sangharsh jhalak raha है...

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