आग जिस पानी से बुझती, उसके भीतर आग है
शोर करता क्यूँ समन्दर, सुन छुपा जो राग है
क्या बुराई किसमें कितनी, कहते सुनते हैं सभी
कहने वाले कहते अक्सर, चाँद में भी दाग है
सबके दिल में जो तमन्ना, वो अगर हासिल नहीं
खट्टे हैं अंगूर कह कर, ओढ़ता बैराग है
हमने फिर उनको चुना जो, छल पे छल करते रहे
क्या यही जम्हूरियत या, उनसे कुछ अनुराग है
आ गया पतझड़ तो समझो, पास है ॠतुराज भी
अब कैलेन्डर या बजारों में, सुमन और बाग है
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