नहीं किसी को ज्यादा, कम।
खुशियाँ बाँटें तुम और हम।
यही ज्ञान की असल में पूजा, यही ज्ञान की आरती।
माँ भारती! तू हर पल हमें निखारती।।
धन दौलत जितना हो जाए, बिना ज्ञान बेकार सदा।
इस कारण से ऐसे घर में होती है तकरार सदा।
जहाँ गन्दगी बढ़ जाती माँ अक्सर उसे बुहारती।
माँ भारती -----
घूम रहे कुछ मतवाले बन यहाँ, वहाँ और इधर, उधर।
ऐसे भटके लोगों को भी दिखलाती हो सही डगर।
अपनी सन्तानों को तेरी नजरें सदा निहारती।
माँ भारती -----
खर्च करो तो धन जितने हैं यारों अक्सर घट जाते।
मगर खजाना तेरा ऐसा खर्च करो तो बढ़ जाते।
सुमन चढ़ाता सुमन चरण में जब जब उसे पुकारती।
माँ भारती -----
खुशियाँ बाँटें तुम और हम।
यही ज्ञान की असल में पूजा, यही ज्ञान की आरती।
माँ भारती! तू हर पल हमें निखारती।।
धन दौलत जितना हो जाए, बिना ज्ञान बेकार सदा।
इस कारण से ऐसे घर में होती है तकरार सदा।
जहाँ गन्दगी बढ़ जाती माँ अक्सर उसे बुहारती।
माँ भारती -----
घूम रहे कुछ मतवाले बन यहाँ, वहाँ और इधर, उधर।
ऐसे भटके लोगों को भी दिखलाती हो सही डगर।
अपनी सन्तानों को तेरी नजरें सदा निहारती।
माँ भारती -----
खर्च करो तो धन जितने हैं यारों अक्सर घट जाते।
मगर खजाना तेरा ऐसा खर्च करो तो बढ़ जाते।
सुमन चढ़ाता सुमन चरण में जब जब उसे पुकारती।
माँ भारती -----
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