आजादी से अब तलक, बस ये शासक साफ।
देश-भक्त जो स्वर्ग में, इनको करना माफ।।
जब इनके करतूत की, खुली जहाँ कुछ पोल।
तब ये पीटे जोर से, राष्ट्रवाद के ढोल।।
संविधान के दायरे, में करते जो काम।
राष्ट्र - भक्ति सचमुच यही, बढ़े देश का नाम।।
राष्ट्रवाद इक भावना, जन - जन हृदय समाय।
इनकी परिभाषा अलग, फिर जबरन समझाय।।
अबतक के शासक सभी, सबके सब बेकार।
काबिल इक सरकार जो, वर्तमान सरकार।।
होता ही है एक दिन, अहंकार का नाश।
आमजनों को फिर मिले, एक नया आकाश।।
सबको लेकर साथ में, शासन हो श्रीमान।
सब चेहरे पर हो सुमन, स्वाभाविक मुस्कान।।
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