Saturday, December 14, 2019

संख्या-बल से डरा रहे होॽ

कोई  नहीं किया वो करते,
लोक-लाज से भी न डरते,
मदहोशी  में देश के भीतर,
नया खेल नित करा रहे हो।
संख्या-बल से डरा रहे होॽ?

          हमने    तुमको   दी  है  गद्दी,
          बढ़ी    तेरी   सीमा  - चौहद्दी,
          मूर्ख बनाकर उस जनता को,
          यहाँ - वहाँ  तुम  चरा  रहे हो।
          संख्या-बल  से  डरा  रहे होॽ

नोच  रहे तुम उनकी बोटी,
जिन्हें  जरूरत  पहले रोटी,
पर उसके  बदले  वादों की,
क्यों लालीपाॅप धरा रहे हो?
संख्या-बल  से डरा रहे होॽ

          मिल जुलकर हम  रहते आए,
          साथ सुमन के सुख-दुख गाए,
          भाई - भाई   को  साजिश  से,
          आपस  में  नित  लड़ा  रहे हो?
          संख्या-बल  से   डरा  रहे  होॽ

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