कोई नहीं किया वो करते,
लोक-लाज से भी न डरते,
मदहोशी में देश के भीतर,
नया खेल नित करा रहे हो।
संख्या-बल से डरा रहे होॽ?
हमने तुमको दी है गद्दी,
बढ़ी तेरी सीमा - चौहद्दी,
मूर्ख बनाकर उस जनता को,
यहाँ - वहाँ तुम चरा रहे हो।
संख्या-बल से डरा रहे होॽ
नोच रहे तुम उनकी बोटी,
जिन्हें जरूरत पहले रोटी,
पर उसके बदले वादों की,
क्यों लालीपाॅप धरा रहे हो?
संख्या-बल से डरा रहे होॽ
मिल जुलकर हम रहते आए,
साथ सुमन के सुख-दुख गाए,
भाई - भाई को साजिश से,
आपस में नित लड़ा रहे हो?
संख्या-बल से डरा रहे होॽ

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