इधर उधर के फिर कुछ मुद्दे फेक रहे हैं
आग लगाकर रोटी अपनी सेक रहे हैं
हाथों को जब काम नहीं फिर दम घुटता
जिनके दिल में कुछ तो यार विवेक रहे हैं
वही सिखाते बातें नारी-अस्मत की
जो आदत से जीवन भर दिलफेंक रहे हैं
आमजनों का भला नहीं कर पाए जो
ऐसे शासक अपने यहां अनेक रहे हैं
ऐसे शासन को बदला फिर बदलेंगे
मिलकर सुमन इरादे जब जब नेक रहे हैं
आग लगाकर रोटी अपनी सेक रहे हैं
हाथों को जब काम नहीं फिर दम घुटता
जिनके दिल में कुछ तो यार विवेक रहे हैं
वही सिखाते बातें नारी-अस्मत की
जो आदत से जीवन भर दिलफेंक रहे हैं
आमजनों का भला नहीं कर पाए जो
ऐसे शासक अपने यहां अनेक रहे हैं
ऐसे शासन को बदला फिर बदलेंगे
मिलकर सुमन इरादे जब जब नेक रहे हैं
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