Saturday, January 4, 2020

वो सलाम चाहता है

कुछ काम के  बिना वो बस नाम चाहता है
वो  गीत  नहीं गाना  जो निजाम चाहता है

दीवार  खड़ी  करके  दूरी  बढ़ायी  जिसने
बदले  में आज हमसे वो सलाम चाहता है

हालात  यूँ  हैं  बिगड़े  रोटी  नहीं मयस्सर
समझा  रहे  क्यों सबको ये राम चाहता है

सदियों  से भाईचारा अपनी यही विरासत
वो   आपसी  मुहब्बत  नीलाम  चाहता  है

हँसकर  भले या रो कर जगना तुझे पड़ेगा
करना  सुमन  वही  जो  आवाम चाहता है

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