कुछ काम के बिना वो बस नाम चाहता है
वो गीत नहीं गाना जो निजाम चाहता है
दीवार खड़ी करके दूरी बढ़ायी जिसने
बदले में आज हमसे वो सलाम चाहता है
हालात यूँ हैं बिगड़े रोटी नहीं मयस्सर
समझा रहे क्यों सबको ये राम चाहता है
सदियों से भाईचारा अपनी यही विरासत
वो आपसी मुहब्बत नीलाम चाहता है
हँसकर भले या रो कर जगना तुझे पड़ेगा
करना सुमन वही जो आवाम चाहता है
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