फागुन में अक्सर प्रिये, तब तब दिल को चैन।
प्रियतम से जब जब मिले, चुपके चुपके नैन।।
मस्त पवन के संग में, रंग भरे जज़्बात।
बाहर भी तन भींगता, कमरे में बरसात।।
अंग अंग में रंग से, दिल में प्रेम प्रसंग।
होते तंग अनंग से, जब जब जगे तरंग।।
कंत विरह की वेदना, मन में दुख अनन्त।
आस लगाए अंत तक, जबतक ॠतु वसन्त।।
होली को समझें नहीं, सुमन रंग का खेल।
रंगों सा इन्सान में, हो आपस में मेल।।
प्रियतम से जब जब मिले, चुपके चुपके नैन।।
मस्त पवन के संग में, रंग भरे जज़्बात।
बाहर भी तन भींगता, कमरे में बरसात।।
अंग अंग में रंग से, दिल में प्रेम प्रसंग।
होते तंग अनंग से, जब जब जगे तरंग।।
कंत विरह की वेदना, मन में दुख अनन्त।
आस लगाए अंत तक, जबतक ॠतु वसन्त।।
होली को समझें नहीं, सुमन रंग का खेल।
रंगों सा इन्सान में, हो आपस में मेल।।
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